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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ


वृत्तियाँ अगणित भी हो सकती हैं। महर्षि पतञ्जलिके अनुसार वृत्तियोंका स्वरूप देखिये। महर्षि पतञ्जलि कहते हैं : -

'प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः'  ( १। ६)।

लौकिक ज्ञानका जो सम्बन्ध है, वह प्रमाण कहलाता है। इसके तीन भेद हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान एवं आगम। प्रत्यक्ष वह ज्ञान है जो नेत्रों इत्यादि इन्द्रियोंसे प्राप्त है। अनुमान उसे कहते हैं जिसे हम कुछ चिह्न देखकर अनुमान कर लेते हैं। 'आगम' शास्त्रोक्त वचन अर्थात् सच्चे तत्त्वज्ञानी आप्त मनुष्योंके शब्दोंद्वारा प्राप्त होता है। अन्य चार वृत्तियाँ ये हैं :-

विपर्यय-जिससे मिथ्या ज्ञान हो। विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूप्रतिष्ठम् (पा० यो० १। ८) अर्थात् वह ज्ञान जो सच्चे रूपमें स्थित नहीं है।

विकल्प-जो वस्तु शून्य अर्थात् वास्तवमें कुछ हो ही नहीं, किन्तु केवल शब्द-मात्रसे जानी जाय। वेदान्ती समग्र संसारकी वस्तुओंको विकल्प ही मानते हैं।

निद्रा-किसी पदार्थके न होनेका प्रत्यय अर्थात् ज्ञान जिस वृत्तिका आलम्बन है उसे निद्रा कहते है। जब स्वप्न आते हों तो वह निद्रा नहीं है।

स्मृति-अन्तिम वृत्ति स्मृति है। यह अनेक दुःखोंका कारण बन जाती है। अतएव इसका विरोध होना आवश्यक है 'अनुभूतविषयासम्प्रमोषः स्मृतिः' (पा. यो. १। ११)।

स्मृति अनुभवसे न्यूनका तो ज्ञान कराती है, किन्तु अधिकका नहीं।

उक्त वृत्तियाँ यदि सात्त्विक हों तो सुख उत्पन्न करेंगी और सुखसे राग उत्पन्न होगा। अर्थात् मन सुखके वशीभूत होगा तो मुक्तिमें बाधा पड़ जायगी। इन वृत्तियोंका विरोध ही मुक्तिकी इच्छा करनेवालेको परमावश्यक है।

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

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